सरकारी कर्मचारियों के लिए वह दिल्ली की किसी फाइल से निकलकर उनकी ज़िंदगी को छू सकने वाला एक बदलाव बनता हुआ दिखने लगा। उसी समय हरियाणा के एक छोटे से कस्बे में तीन ऐसे लोग थे, जिन्होंने कभी नॉर्थ ब्लॉक नहीं देखा था, लेकिन वहाँ होने वाला हर फैसला उन्हें अपने ही घर की दीवारों पर गूंज जैसा महसूस होता था। ##

राजेश: एक नए अंक का इंतज़ार राजेश, ज़िला कार्यालय में काम करने वाला मध्यम आयु का क्लर्क, उस दिन को कभी नहीं भूल पाया जब उसके मोबाइल पर एक खबर चमकी – *“अष्टम केंद्रीय वेतन आयोग गठित, कार्य‑क्षेत्र की अधिसूचना जारी।”* बाक़ी लोगों के लिए यह बस एक हेडलाइन थी; उसके लिए यह उम्मीद थी कि शायद उसकी वेतन पर्ची पर छपा मूल वेतन अब इतना बढ़ सकेगा कि उसके बेटे के कॉलेज के सपने सच लगने लगें। – उसने सातवें वेतन आयोग का दौर देखा था; एक बार वेतन बढ़ा, फिर धीरे‑धीरे स्कूल की फीस, किराया और इलाज के ख़र्च ने उस बढ़ोतरी को निगल लिया। – इस बार दफ़्तर में हर जगह *फिटमेंट* और *पे मैट्रिक्स* जैसे शब्द गूंज रहे थे, और लोग फुसफुसाकर कह रहे थे कि तनख्वाह फिर अच्छी‑खासी बढ़ सकती है, भले ही किसी को सही आंकड़ा पता नहीं था। हर चाय‑खाने की चर्चा एक छोटी सी संगोष्ठी में बदल जाती। कोई कहता आयोग को रिपोर्ट देने के लिए इतने महीने दिए गए हैं; कोई कहता लागू होना शायद 1 जनवरी 2026 से होगा, तो कोई कहता इससे भी बाद में। राजेश के लिए अधिसूचनाओं की तारीखें उतनी मायने नहीं रखती थीं, जितना यह कि किसी आने वाले महीने की तनख्वाह शायद आज की सब्ज़ियों के दामों से मेल खा पाए। ## मीरा: पेंशन, वादे और इंतज़ार उसी कस्बे के दूसरे छोर पर मीरा रहती थी, जो चालीस साल पढ़ाने के बाद पेंशन पर जीवन बिता रही थी। जब उसने सुना कि लाखों पेंशनभोगी भी अष्टम वेतन आयोग के दायरे में आएंगे, तो उसे लगा जैसे दिल्ली में किसी ने दूर से ही उसका नाम लेकर उसे याद कर लिया हो। – उसकी पेंशन इतनी भर थी कि सब कुछ ठीक रहे तो गुज़ारा हो जाए, लेकिन साठ के बाद की ज़िंदगी अपने ही अनचाहे ख़र्च लेकर आती है। – वह हर छोटा‑बड़ा अपडेट ध्यान से पढ़ती: आयोग पेंशन पर क्या सिफारिश करेगा, महंगाई राहत कैसे बदलेगी, और नई गणना में क्या उसके ब्लैकबोर्ड के सामने बिताए सालों की कोई कीमत जुड़ पाएगी। अख़बारों में अध्यक्ष, सदस्य, समय‑सीमा और सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ जैसी बातें छपती थीं। मीरा की भाषा में सवाल बहुत सरल थे: “क्या दवा लेना थोड़ा आसान हो जाएगा? क्या साल में एक बार की जगह दो बार पोते‑पोती से मिलने जा पाऊँगी?” ## अर्जुन: नया भर्ती जवान इधर अर्जुन, अभी‑अभी भर्ती हुआ एक जवान, ने अभी सरकारी नौकरी की शुरुआत ही की थी। राजेश और मीरा के विपरीत उसने कभी किसी वेतन आयोग को अपनी तनख्वाह बदलते हुए नहीं देखा था। – उसके लिए अष्टम वेतन आयोग एक कहानी जैसा था, जिसे बैरक में बड़े लोग बताते थे – कैसे एक रात में वेतन‑मान बदल गए थे और एरियर किसी देर से आए त्यौहार बोनस की तरह पहुंचे थे। – उसने सुना था कि नया आयोग ज़िम्मेदारियों, प्रदर्शन और वेतन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करेगा, और वह सोचता कि क्या कभी उसकी लंबी ड्यूटी की रातें भी वेतन पर्ची में साफ दिखेंगी। अर्जुन अपने तरह के हिसाब लगाता। अगर लागू होने में कुछ साल लग भी गए, तो शायद उसके तीसरे दशक की शुरुआत, बीसवें दशक की शुरुआत से ज़्यादा सहज होगी। उसे बजट की पंक्तियों से ज़्यादा फ़िक्र इस बात की थी कि घर कितने पैसे भेज पाएगा और क्या थोड़ा‑बहुत निवेश भी शुरू कर सकेगा। ## दिल्ली: कागज़ पर अंक, हाशिए पर ज़िंदगियाँ काफी दूर दिल्ली में, अष्टम वेतन आयोग की बैठकें फाइलों, आँकड़ों, आर्थिक अनुमानों और संगठनों के ज्ञापनों के बीच चल रही थीं। उन्हें वेतन संरचना, भत्तों और पेंशन की समीक्षा करके तय समय में सिफ़ारिशें सौंपनी थीं। – कागज़ पर उनका काम अनुपात, महंगाई, राजकोषीय क्षमता और निजी क्षेत्र के वेतन से तुलना जैसे शब्दों में बँधा हुआ था। – कागज़ के बाहर उनकी हर सिफ़ारिश का एक‑एक प्रतिशत राजेश, मीरा और अर्जुन जैसे घरों की रसोई, दवाई की पर्ची और बच्चों की फीस पर असर डालने वाला था, ऐसे घर जिनमें वे कभी नहीं जाएंगे, पर जिनकी धड़कनों में उनका असर महसूस होगा। कुछ सदस्य सोचते कि क्या हर दशक बाद आयोग बनाने के बजाय कोई स्वतः‑संचालित व्यवस्था होनी चाहिए। कुछ को चिंता थी कि वेतन बढ़ने से सरकार का ख़र्च कितना बढ़ जाएगा, पर साथ ही यह एहसास भी था कि लाखों कर्मचारी और पेंशनभोगी अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए इन निर्णयों पर निर्भर हैं। ## जब रिपोर्ट आएगी कई महीनों बाद जब रिपोर्ट सरकार के सामने रखी जाएगी, तब इस कहानी का अगला अध्याय शुरू होगा। कैबिनेट नोट, बैठकों की चर्चा और अंतिम मंज़ूरी तय करेगी कि नई वेतन‑सारणियाँ किस तारीख से लागू होंगी और एरियर, अगर हों, तो कैसे दिए जाएंगे। – राजेश के लिए उस तारीख का मतलब होगा बेटे की पढ़ाई के विकल्पों की नई गणना। – मीरा के लिए यह बैंक से आने वाले पेंशन संदेश में पिछले महीने से थोड़ा बड़ा अंक देखने की उम्मीद होगी। – अर्जुन के लिए यह अपनी वेतन पर्ची देखकर यह महसूस करना होगा कि उसके कंधों की वर्दी पर सिर्फ़ फ़र्ज़ नहीं, थोड़ा‑सा ज़्यादा न्याय भी दर्ज हुआ है। सरकारी भाषा में अष्टम वेतन आयोग, सीमित समय और स्पष्ट कार्य‑क्षेत्र वाला एक अस्थायी निकाय भर है। लोगों की भाषा में यह वह उम्मीद है कि देश के लिए किए गए काम की पहचान सिर्फ़ शब्दों से नहीं, रुपयों से भी होगी, और यह कि जब दिल्ली में अंक बदलते हैं तो ज़मीन पर ज़िंदगियाँ भी उनसे एक छोटा‑सा कदम आगे बढ़ पाती हैं।
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